Saturday, June 4, 2016

मैं लुटेरों का बेटा हूं ...




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ना मैं कोई खोजकर्ता
ना कोई सियासतदान हूं।
खड़ा हूं कुछ सवाल लिए
मैं हैरान हूं परेशान हूं।
कौन ललकारा शोशल मीडिया में
कौन घिरा तलवारों में
सफेद झूठ वो मुरथल का
कैसे छप गया अखबारो में
दुकान मकान के चर्चे ही चर्चे
इन्सान जले का फिक्र नहीं।
जिसने भाईचारा फूंका है
उस बंदर का कहीं जिक्र नहीं।
आज कोस रहे है 35 उनको
जिसने कभी किसी को कोसा नहीं।
हैरान करती है भेड़चाल मुझको
ये सांसद किसी का मौसा नहीं।
लुटेरों की कौम थी जिसने
दुकान मकान सब तोड़ दिए
पर सड़कों पे खड़े लदे ट्रक
उन लुटेरों ने कैसे छोड़ दिये।
जिस बिस्तर पे राहगिरों को सुलाया
अभी मैं भी उसी पे लेटा हुं।
गर फंसों को खिलाना लूट है
तो गर्व है मुझे मैं लुटेरों का बेटा हूं।
रमेश चहल।

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