Thursday, December 29, 2011

सावधान.....

मुझ से उम्मीद बांधने वालो सावधान हो जाओ
मै वो नही जो तुम समझ रहे हो
मै एक बुझते दिए की लो जैसा हूँ
जिसे जलना भी है और लड़ना भी है
अंधकार से और खुद के अस्तित्व से
मेरी सिर पे कर्ज है एक धूप में झुलसी हुई चमड़ी का
जिसे मेरा बाप अपने शारीर पर
एक चादर की तरह ओढ़कर मेरे भविष्य के लिए दुआ करता है
मै करजई हूँ उन मिटी हुई हाथ की लकीरों का
जिनकी जगह फटी हुई बुवाइओ ने
तब से कब्ज़ा जमा रखा है
जब से मेरी माँ ने मेरी तरक्की के सपने देखने शुरू किये थे
मुझे चुकाना है हिसाब सूद समेत उन आशाओ का
जो दुसरो का पेट भरना ही जानती है पर
अपना पेट भरना उन्हें आज तक नही आया
अब आप ही कहो ऐसे में मुझे कैसे याद रहेंगे नाम
उन फूलो के जिस की तुलना सोंदर्य से की जाती है
चांदनी रात की आभा उस धरातल पे खड़े होकर कैसे निहारु
जहा खड़े होते ही चांद में
एक बड़ी सी रोटी के सिवा और कुछ नही दिखता

मौन .........

ए लोगों के रोशनदानों से झांक कर
उनकी निजता को चटकारो का मिश्रण देकर
परोसने वाले पुरोधाओ
स्टिंग ओपरेशन की तलवार से
एक बक्से में बैठकर लड़ने वाले योद्धाओ
हिम्मत है तो मेरे पेट की
आँतडियो का हाल परोस के दिखाओ
अगर पिया है अपनी असल माँ का दूध
तो जरा गिन के दिखाओ
मेरे पेट के भीतर पड़े अनाज के दाने
खोखली लगती है शायद ये आधारहीन बाते तुम्हे
पर याद रखो जिस दिन मै रूठ गया
उस दिन बाँझ हो जाएगी ये धरती माँ
                                                                     और खाली हो जायेंगे तुम्हारे पेट
                                                                     फिर खा लेना मेज पे पड़े ये कागज
                                                                       और पी लेना इन पैनो की सियाही
                                                                            अगर फिर भी भूख ना मिटे
                                                                             तो डाउनलोड कर के दिखाना
                                                                                सिर्फ एक गोल गोल रोटी
                                                                                     अगर ऐसा कर पाओ
                                                                                          तो मै त्याग दूंगा अपनी अन्नदाता की पदवी
                                                                                               और धार लूँगा कभी न टूटने वाला मौन .........

Saturday, December 24, 2011

मै.....


मै
इक्कीसवीं सदी का
आधुनिक मानव
जब
रोटी से ऊपर उठकर
वर्तमान के
अत्याधुनिक समाज पर
तनिक दृष्टि डालता हू
तब मस्तिष्क में
कुछ खोखलापन सा
खटकता है
आँखों से पलकों के परदे
पुनः
हटने को मचलते है
तब पता हू
इर्द गिर्द
कुछ बिखरे कातिल से
बिन पंख वाले
मुर्दा सपने
मुह फेरे
खुद से ही बतियाते
तेज हीन चेहरे
बड़े बड़े भवनों में कैद
असंख्य चीखें
और बिन साँस लिए
जीवन की
कभी ना खत्म होने वाली
दौड़
गर रोटी से ऊपर
यही दृष्टांत है
तो फिर
मै रोटी की सोच तक ही
सिमटना चाहता हू
रमेश चहल .....................

Saturday, October 15, 2011

तू बावला होरया सै रुलदू

कागज फरोलते फरोलते सबेर आज 7 - 8 साल पुराणी कविता हाथ लगी .मेरी लिखी दूसरी हरयाणवी कविता है या... कविता लिखी गयी थी B A फर्स्ट इयर मै जब मै 18 साल का था ............. .........अर बोली बी थी रत्नावली फेस्ट मै ...................... पहली बार सीनेट हाल मै..........खास बात या थी अक उसे साल रत्नावली मै पोएट्री कॉम्पीटीसन. शुरू होया था ...... पहली साल 81 एंट्रीज थी जहा तक मेरा खियाल है ....... और उसमे दूसरा स्थान पाया था इस कविता ..ने ..... इस लिए उन यादो के पिटारे से एक मोती आप के पेशे खिदमत ...

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कयूँ बावला होरया सै रुलदू यो तेरा हरयाणा नहीं 

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पैरा मै रुलदी संस्कृति का कोई क्यूँ ठान्दा ठाणा नहीं

कयूँ सुनवाई खातर इसकी बनया अदालत थाणा नहीं

धरती नै सूंघ कै किस की पैड काढैगा

तू बावला होरया सै रुलदू यो तेरा हरयाणा नहीं .............



करू गुमान आज मै दुनिया की किस हस्ती पै

लाखो द्रोपदी नंगी होली इस किरसन की धरती पै

दुशासन का राज होया निरे धरम अर ज़ात बीकै सै

न्याय के इस अखाड़े मै रै रुलदू निरे गात बीकै सै 

रांझे खुद दुश्मन हीर के कोई आखन काणा नहीं

हरफूल जाट जुलानी का क्यूँ फेर तै होया आणा नहीं

तू बावला होरया सै रुलदू यो तेरा हरयाणा नहीं .............



माँ बोली के कपडे तार सारे आम तमाशा दिखान्दे देखे

शहर की नक़ल गामा मै चाली बालक सियाणे गिरकांदे देखे

खुला आंगण बीच मै चूल्हा गिदाल्या गेल गिरांदे देखे

लोक गीत अर रागनिया नै तडपाकै काचा मंदा गांदे देखे

समझदार बेठे सै सारे कोई बालक याणा नहीं

फेर क्यु संस्कृति का कोए बुनता ताणा बाणा नहीं

तू बावला होरया सै रुलदू यो तेरा हरयाणा नहीं .............



बहु बेटी की इज्जत करनिये माणस ना वै आम रहे

फैसन तै बिना आज के गबरुवा नै ना काम रहे

बेटे की अगत की चाह मै बिक माँ बापां के चाम रहे

अर आंधी पीसै कुत्ता खावै लुट गामां के गाम रहे

चाला होगया कालेज आया बाप आज बेटे नै पीछाणा नहीं

अर गेट पै बैठ कै साल काढ दी कदे कालेज मै जाणा नहीं

तू बावला होरया सै रुलदू यो तेरा हरयाणा नहीं .............



सणे डाहले आज टूटी पींघ सामण की व़ा रीत गयी

दयोर कै ऊपर भाभी की फागण की व़ा जीत गयी

हाथ गात नै खावण लागे टूट रिश्त्या की भीत गयी

बाजरे की रोटी चटणी टिंडी व़ा ठंडी ठंडी शीत गयी

बियाह दसुटण पै डी जे रींगै किते बाजा नगाड़ा बजाणा नहीं

लाडो की मन की मन मैए रहगी कोई सांझी अर ढूकाणा नहीं

तू बावला होरया सै रुलदू यो तेरा हरयाणा नहीं .............



गुड के कोल्हू सांझे खलिहान बिड्सी की व़ा बात गयी

कठे पाली भैंस चरावै आज कित वै चांदनी रात गयी

मिल बैठ कै रोटी खाणिए माणसा की व़ा ज़ात गयी

बोल के गेल माणस मारदे सांगियाँ की औकात गयी 

चरखे पड़े आज सारे छाता पै किसे मै भी ताकू ताणा नहीं

धनपत की ठहरो बियास की ठेस अर लख्मीचंद का गाणा नहीं

तू बावला होरया सै रुलदू यो तेरा हरयाणा नहीं .............



खुद की ओलाद नै पेट मै मरवादे इसा जमाना आरया सै

किसे कै धर्म ईमान नहीं माणस नै माणस खारया सै

बहुवा की सुण कै माँ काढदी बहण का रहया ओ भाई ना

अर भाई नै भाई पल मै मार दे कोई दादी चाची ताई ना

अपणी जननी कै लात मारदे आदमियत का ओ दाणा नहीं

अर सारे ऊरा परा नै खिंडगे रहया कोई माणस सियाणा नहीं

तू बावला होरया सै रुलदू यो तेरा हरयाणा नहीं .............

तेरा हरयाणा नहीं .............

तेरा हरयाणा नहीं .............

 
तीसरी पसली के नीचे बहुत दर्द हो रहा है  
अक्सर हंसाने वाला आज खुद रो रहा है  
मै जिंदा हूँ मुझे यकीन दिलाओ दोस्तो ! 
और बताओ मेरी कब्र में ये कोन सो रहा है  
जिंदगी का फलसफा छूट गया काफी पीछे 
मेरा कोई अपना ही पीठ पर जहर बो रहा है  
यही कहा था उसने वो मेरा है सिर्फ मेरा ही 
फिर आज क्यों वो किसी दुसरे का हो रहा है  
गजल के लिए दर्द नहीं प्यार माँगा था मैंने 
दुआ में कमी थी कहीं चहल जो दर्द हो रहा है

Tuesday, September 20, 2011

true trophy in sirsa........................................

Sunday, September 18, 2011

inspiro -11 telent search show ko khub enjoy kiya hamne


Wednesday, June 29, 2011

आज एक बाप अपणी बेटी तै हार गया

सारे लाहणे वो पल मै तार गया
आपणी लाडो के चा पुगाणे मन मै मार गया
पैरा मै रुल्गी पगड़ी अर इज्जत तार तार
आज एक बाप अपणी बेटी तै हार गया




आज एक बाप आपणी बेटी तै हार गया




आपणी इज्जत की गेल खुभैत कररया सै
ताऊ सुरता आज पंचैत कररया सै
थ्याई माणसां तै भर री सै
अर खाट भी चर्चा कर री सै
खड्या हो कै एक पंचायती बोल्या
अर पंचायती रोले का राज खोल्या
ताऊ सुरता की छोरी रामफल गेल भाजगी
जिसतै म्हारे सारे गाम की इज्जत लाजगी
पंचैत मै खुसर फुसर चाल पड़ी
सारया की खंडके बंधी नाड़ हाल पड़ी
एक बोल्या फेर इसमे रामफल का के खोट सै
ताड़ी एक हाथ ना बजती दोनुवा की ज़ोट सै
दूसरा बोल्या फेर दोनुवा नै मजा चखा दयो
गाम के रिश्ते के हो सै दोनुवा नै बता दयो
फेर एक और खड्या होलिया
अपणे सिर पै तै तार कै तोलिया
बोल्या दोनुवा नै मारे पाछै कुणसा सुख हो ज्यागा
एकला छोरा सै रामफल माँ बाप नै दुख हो ज्यागा
सुरता बोल्या एकला सै तो मनै के आंट सै
लागै सै छोरे इसमै तेरी भी सांट गांठ सै
छोरा बोल्या ताऊ सांट गांठ तो तेरी छोरी करगी
जो तेरे खंडके नै अर मुछा नै छात पै धरगी
तू जद नी बोल्या जद ओ रामफल यार बणाया
गाम की गाम मै तेरी छोरी नै भरतार बणाया
सुरता का रंग लाल होगया
अर पंचायत मै बवाल होगया
लोग एक दुसरे की आँख्यां मै देख देखकै हाँसै थे
बात बात पै हुंगारे भर भरकै खांसै थे
ताऊ सुरता उनकी हरकता नै खूब पीछानै था
एक एक आदमी की ओकात नै आछी तरियां जानै था
रै ये वाए लोग थे जो कदे उसका झूठा खाया करदे
बोलणा तो दूर की बात कदे नाड़ नी ठाया करदे
आज भरी पंचैत मै इज्जत की बिरान माटी होरी थी
किस तै कहंदा सुरता करण आली खुद की छोरी थी




रै व़ा छोरी जिस के कहणे ओ पल मै पुगाये करदा
गेल रोंदा गेल हासदा अर गेल्याए गाये करदा
मासूम सी दिखण आली छोरी आज सारा कीमे उजाड़गी
बचपन मै मुछां तै खेलण आली आज उननै जड़ तैए पाड़गी
फेर एक छोरा बोल्या ताऊ कयूँ इतना कठ कर रया सै
अर सबर कर ले इसे मै कयूँ गात का मठ कर रया सै
सुरता पंचैत कानी लखाया
पर उसका हिमायती कोए नी पाया
खड्या होकै बोल्या रै क्यूकर सबर कर लयू
इस तै आछा तो कुए मै पड़ कै म़र लयू
रै बियाह तै तीन दिन पहलया जिस की छोरी चली जा सै
उस बाप की पगड़ी सारे बाजार छली जा सै
रै के इसे दिन खातर लोग छोरियां नै चाहवै सै
सयाणे सै वै लोग जो छोरीया नै पेट मै मरवावै सै
जे मै भी आपणी छोरी नै पेट मै मरवा खडदा
तो यू दिन मनै कदे भी नी देखना पड़दा
रै व़ा के छोरी जो अपणे बाप की पगड़ी नै रुलवा दे
अपणे गाम की चोगरदे नै हाँसी करवा दे
ना सूरते न्यू रामफल का बाप बोल्या
अर खंगार कर कै आपणा सुखा गला छोल्या
रै पेट मै मारे तै यो रोला नी झुकया करदा
बाल पाडे तै कदे मुर्दा का वजन नी मुकया करदा
रै गलती आपणी ए सै आप बालका नै नी सीखा पाए
अर सही संस्कारा का उन नै रह नी दिखा पाए
एकला सै तो के होया मै घर मै नी बड़ण द्यूंगा
रामफल अर उस छोरी नै बार नै नी खडण द्यूंगा
सुरता बोल्या रै मेरा इतने मै क्यूकर सर ज्यागा
मनै तो जिब सबर आवै जद तेरा छोरा मर ज्यागा
रै आये बेठे रिश्तेदारा तै मै के मुह दिखाउंगा
जिस दिन थयागे मै दोनुवा नै पाणी पियाउंगा
थयाई मै चोगरदे नै सी सा सुप थी
इस बात पै पूरी पंचैत चुप थी
फेर बोल्या सुन ल्यो ए जे कोए छोरी सुणदी हो
आपणे बाप की रे रे माटी करण के सपने बुणदी हो
जिन्दे जी आपणी खुशिया कै आग ना लायीयो
अर आपणे बाप की पगड़ी कै कदे दाग ना लायीयो
या बड़ बड़ करदा सुरता घर नै चाल पड्या
सुण कै उसकी बात सारया का कालजा हाल पड्या
आगले दिन बखत सारे गाम की हासी खा गया
ताऊ सुरता घरा जांदे रात ए नै फासी खा गया
बेचारा सुरता बस इतने मै ए सार गया
अक आज एक बाप आपणी बेटी तै हार गया

Thursday, June 23, 2011

आज कहूं मै लख्मीचंद नै

आज कहूं मै लख्मीचंद नै तू कुणसे पाणी उतर गया
तेरे हरियाणा की संस्कृति कै यो कोण घुन चिमड़ गया
उठ दादा तो भी इब तो कीमे ना कीमे बोल
आज फेर पदमावत का कोए अगला किस्सा खोल
मार निगाह तो भी अर देख तेरा हरियाणा
ना रहे देसी खान पान ना रहा देसी बाणा
दूध दही की सुन कै इब तो हाँसी भी ना आती
मखण मलाई कित थे इब तो लासी भी ना पाती

तेरी पिछाण की तूड़ी हो ली तू भी आ कै देख आज
पिसे अर सुआद की लाग री जणे खणे कै खाज
ना कोए मांगे राम रहया ना कोए धनपत मीर
बींध गड़े नगाड़े तासे मार मार लाम्बे तीर
बीन अलगोजे बांसली इब कित तै ढूंढ़ कै लियावा
धोले खान बरगे चेले तेरे कित तै मूंढ कै लियावा
सांझी आहले रागनी गीत बचे आर ना बचे तेरे सांग
ना पुराणा संगीत बचया तोड़ दी सब कयाहे की टांग
चरखयां की टूटी ताणी अर ग़ल के टूटे गीत
सणे डाहले आज पींग टूटी तेरे सामण की रीत

आज हर कोए गडवा बांध कै खुद नै कलाकार कुहावै सै
अर ये कलजुगी कलाकार तो नीरे झोटे बिकावै सै
या फेर किसी दुसरे की गेल्या रागनी कॉम्पिटीशन रचावैगा
अर उस कॉम्पिटीशन मै नीरी लुगाई अर छोरीया नै नचावैगा
कोए फ़िल्मी गाणा तोड़ मरोड़ कै हरयाणवी मै गावैगा
अर उस गंदे से गाणे नै दादा चट पटी रागनी बतावैगा
ना रागनी का मतलब पता अर ना जानै कीमे राग
संस्कृति अर संगीत कै ला गडी तेल गेड गेड आग
काचा मंदा गा कै नै ये कुछ कहणा चाहवै सै
हंस चूगरे सै दाना चुगा आज काग मोती खावै सै

तेरे बिना या संस्कृति आज अपनी पिछाण खोवै सै
या लहू लुहाण होई दादा तेरे छल्या मै बेठी रोवै सै
आज इसका चोगरदे तै अँधेरा गुप सै
इस बाबत तो दादा बड़े बड़ेरे भी चुप सै
यो बखत तनै बुलावै दादा इतना कहणा पुगा जा
बण मसीहा संस्कृति का एक बार दोबारा आजा
आज हर कोए बण लिया सै रूप रंग का चोर
अर मै कित तै लियाऊं टोह कै लख्मीचंद एक होर
लख्मी चंद एक और दोस्तों लख्मी चंद एक होर

Tuesday, June 14, 2011

मै किसान का बेटा सूं ........


गरीबी का दोल्डा ओड़ कै मै कई बार लेटया सूं
तंगी मंदी अर दर्द तै मै कई बार फेटया सूं
लोगां नै कमा कै देईए अर खुद पै कुछ नी
आज फख्र करू के रोऊ मै किसान का बेटा सूं ........



गाम कै बीच मै छोटी इंटा का एक छोटा सा घर सै
अर तंगी मंदी दर्द के गेल्या माहरे चार जिया का बसर सै
एक माँ एक बहन अर मेरे बाप का उतरा होया चेहरा सै
नहर का हाला अर बिजली का बिल आज भी ग़ोज में लेहरया सै
आज किसान की असलियत की फोटो थाम नै दिखाऊंगा
अर इस खेती मै के बचै सै यो सारा हिसाब सुनाऊंगा
मेरै आज भी वो दिन याद सै जड़ मंडी मै चाला होरया था
अर सीरी नै छाती कै लाये मेरा बाप भरल भरल रोरया था
एक तरफ तो जय जवान जय किसान के नारे लाये जा रे थे
अर दूसरी तरफ किसान के लत्ते सरेआम उतारे जा रे थे



(
और जहा से शुरुआत हुयी )
अम्बर के बदला की बाट देख देख कै सबे कीमे खो लिया था
ज़मीन पै आई पपड़ी नै खुरच कै मेरा बाप आधा पागल हो लिया था
फेर खबर आई तो सारा गाम दुःख में जकड लिया
अक नम्बरदार का गाबरू छोरा रात बिजली नै पकड़ लिया
होणी बरती एक दिन यो भगवन भी हम तै खीजरया था
सप्रे करदा करदा मेरा ताऊ चन्दगी हम तै बिछडया था
सीजन मै हाल यो था कोई पानी खातर लड़ मर रया था
कोए रीढ़ आली तुडान खातर कुए के माह पड़ रया था
किसे का बालक पचास पिसे की कुल्फी पै रो रो काटिए काटे था
अर कोई देख मास्टर के बालका के लत्ते आपणे दिल नै डाटे था
मेरै याद सै दिवाली की वा काली रात के वा क्यूकर छाई थी
कर्जे के बोझ मै दबे चांदी नै दोस्तों उस दिन फंसी खाई थी
सरसा शहर मै उस रात दिवाली का जमा मीड सा बल्या था
अर माहरे गाम गुआंड मै उस रात किसे कै चूल्हा नी जल्या था


अर दिन बी याद सै जद घागर मै उफान था
चोगरदे नै पानी पानी सारा कीमे बियाबान था
सारी फसल पानी मै उपरला हिस्सा भी नी छुट रया था
देख बखत की मार माहरे सारे गाम का दम घुट रया था
फसल की चिंता मै ना कोई जागे था अर ना सोवै था
म्हारे गाम का हर आदमी उस टेम कुण मै बढ बढ रोवै था
सरपंच का छोरा अर सीरी पानी मै तिर कै फसल का जाला टा गए थे
अर इसे गए दोस्तों के मै उरै लिया अर वै आज लग उलटे नी आए थे



ले देकै इस विपदा तै भी एक दिन पार पाया
अर पानी उतरे पाछै लोगां की साँस मै साँस आया
लड़ घुल कै किस्मत गेल्या फसल मंडी मै आई थी
रात दिन की मेहनत दोस्तों उस दिन रंग ल्याई थी
फेर इस उपरला नै के कहदे रै रेट नै धरण धरण छन गया
फसल का समुन्दर दिखनिया मिनट मै पानी का जोहड़ बन गया
मंडी मै अफरा तफरी थी कोई तिरपाल अर कोई पन्ना चक रया था
अर सोच कै अपणी अगत सारया का कालजा धक् धक कर रया था
आली होई फसल नै लोग पसीनया गेल्या सुखावै थे
ख़रीदन आले अफसर हाथ मै ठान्दे नाक चड़ावै थे
अर सीधा साधा दिखनिया माणस आज एक उल्टा काम करै था
बुकावे मै कै सड़क पै लिटकै आज चक्का जाम करै था
रै रोटी सेक्निया माणस आज उरै भी उसती बुकावै था
तंगी मंडी अर दर्द गेल पुलिस की लाठी भी खुवावै था



पन्दरा दिन पाछै बिकी फसल एक और मादी छिड़ कै रहगी रै
सारी साल की कमी उस पैड की सियाही मै लिबड़ कै रहगी रै
आढ़ती की बही पै गूंठा ला कै जिब मेरा बाप घर नै जावै था
कर बेट्या बरगी फसल नै याद उसका कालजा मुह नै आवै था
आज दुनिया के अन्नदाता का यो हाल हो लिया
इस खेती के चक्कर मै मेरा सारा गाम कंगाल हो लिया
अर इब मेरै गेल बणनी या सब कयोंके मै छोरा जेठा सूं
अर आज फख्र करू के रोऊ रै मै एक किसान का बेटा सूं
दोस्तों एक अन्नदाता का बेटा सूं
एक किसान का बेटा सूं