Tuesday, July 3, 2012

बाप बड़ा हो गया है .........


मेरा बाप सीधा सा
बिलकुल
सूरज की किरण जैसा
शाम को खेत से घर आता  
तब
जब
हम सो चुके होते
खा पी चुके होते
हमारा झूठा बचा खाना
खत्म करने के बाद ही
      माँ
उनको कुछ नया परोसती
बिन कुछ कहे  पापा खा लेता
हमारी तरह जिद्द करना नही आता था उसको
बस जिद्द पूरी करना ही सीख पाया था अब तक
      ऐसा हमें लगता था
सुबह निकल जाता खेत के लिए
मिट्टी से मिट्टी होते उनको कई साल देखा
बिलकुल ऐसे
जैसे बच्चा खेलता है अपनी माँ की  गोद में
ऐसा बच्चा जिसे कभी बड़ा ही नही होना था
या वो खुद नही चाहता था बड़ा होना
लेकिन कल
मेरा बाप लड़ रहा था हमसे
हमें नही रही फ़िक्र उसकी
बहुए बचा खुचा खाना ही दे देती है हर बार
माँ भी बाप के साथ थी
दोनों हिसाब बता रहे थे लड़कर हमे
किस पे क्या खर्च किया और
क्या देखना पड़ा पिता को इन के पीछे
गाँव से शहर तक का सफ़र
यू ही नही आसानी से हुआ अभी तक
पापा सभी समझौते गिना रहे थे
जो किये थे बस हमारे लिए
हमारा मौन घरवालियो को अखर रहा था
आखिर नही रह सकी चुप
बिना कुछ हमसे पूछे सुना दिया उन्होंने हुकम
हमसे इतना ही जलते हो तो रह लो ना अलग
माँ जी पका दिया करेंगी और खा लेना
अब पापा ने नही सुना कुछ
और
उठा लाया अंदर से संदूक
माँ को बोला चल नही रहना इन बेदिलो के घर
गाँव ही बढ़िया है अपना
माँ असमंजस में थी और
बाप के बागी तेवर देख कर
साफ़ लगता था
कि हमारे साथ साथ पापा भी बड़ा हो गया है
                                                                                                                   - रमेश चहल