Saturday, June 4, 2016

लोगो की घूरती आंखें

सांप से जहरीली हैं लोगो की घूरती आंखें
नजर का डसा तो जीते जी ही मारा जाता है।

रमेश चहल ।

चेले ही अच्छे



नहीं बनना उस्ताद हम तो
चेले ही अच्छे हैं।
रहे भीड़ में दुनिया हम अकेले ही अच्छे हैं।
रमेश चहल। 

बंदे कमाए

दुनिया ने कमाई दौलत मैंने बंदे कमाए हैं
कुछ आंख वाले हैं तो कुछ अंधे कमाए हैं।
बिन बताए सरकार को बेइमानी कर गया मैं
आखिरी सफर के खातिर चार कंधे कमाए हैं।
रमेश चहल।

चलो फिर से बात करते हैं

थोड़ी लंबी ये रात करते हैं। 
चलो फिर से बात करते हैं
चाँद के चकले पे दो रोटियां बेलेंगे
बाँट लो सितारे आज शतरंज खेलेंगे
आओ शै और मात करते हैं।
चलो फिर से बात करते हैं।
यार चाँद को देखो
 कैसा इसका ईमान है
करवा चौथ पे हिन्दू
और ईद पे मुस्लमान है
इस जैसी ही औकात करते हैं।
चलो फिर से बात करते हैं।

बेरोक टोक सबको
चांदनी का प्रकाश मिले
बिन जात पूछे सबको
खुला आकाश मिले
ऐसे अब हालात करते हैं।
चलो फिर से बात करते हैं।
पौ फटने को है
चलो बतियाते चलो
रात के अँधेरे से
सीखते सीखाते चलो
इंसां अपनी जात करते हैं।
चलो फिर से बात करते हैं।
थोड़ी लंबी ये रात करते हैं।
चलो फिर से बात करते हैं।
---------रमेश चहल।

हुनर

मुझे खत में कोरा कागज भेजने वाले शायद नहीं जानते 
गूंगे पन्नो से बतियाने का हुनर मुझे अच्छे से आता है । 
रमेश चहल ।

गूंगे पन्ने

ये गूंगे पन्ने भी अजीब हैं... कमबख़्त 
पहले बोलते नहीं थे और जब से बोल रहे हैं...
रोये ही जा रहे हैं। समझ नहीं आ रहा कैसे चुप कराऊं इन्हें?

मुखौटों का शहर

ईमान खुद दलाल है यहां 
बोली लोग चौराहे पे देते हैं । 
ये मुखौटों का शहर है " चहल " 
लोग शक्ल किराये पे देते हैं । 
रमेश चहल ।

अपनी भी अफवाहें यारो उड़ने लगी हैं

इससे बड़ा कोई सबूत नहीं मेरे मशहूर होने का
अब तो अपनी भी अफवाहें यारो उड़ने लगी हैं।
रमेश चहल ।

अंत नहीं मेरी शान का

माना नहीं हूं शहजादा पर अंत नहीं मेरी शान का।
...दौड़ता है रगों में मेरे ....खून एक किसान का।
रमेश चहल।

रमेश चहल।

बिन तवज्जो के यक़ीनन सूख जाते हैं 
अनजाने रिश्तों में पानी बेहद जरूरी है। 
रमेश चहल।

ढूंढता हूं सन्नाटा मैं एक शोर की खातिर

सूरज चढ़ा फांसी नवेली नई भोर की खातिर।
सरेबाजार शाह लुट गये इक चोर की खातिर।
अपने पंख गिरा आया वो गैर की छत पे
आस्तीन में पाले थे सांप जिस मोर की खातिर।
मौत की चौखट को मैं ठोकर मार आया हूं
मुझे अभी और जीना है किसी और की खातिर।
मुझे पाना है तो किसी इन्सान से यारी कर ले
ये चंदा मामा ने कहा कल चकोर की खातिर।
चीख चिल्लाकर कहूंगा अब मेरे दिल की बातें
तभी ढूंढता हूं सन्नाटा मैं एक शोर की खातिर
यूंही नहीं शायरी आ जाती'चहल'चलते चलते
गुजारा है बेहद बुरा वक्त इस दौर की खातिर।
रमेश चहल।

मैं लुटेरों का बेटा हूं ...




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ना मैं कोई खोजकर्ता
ना कोई सियासतदान हूं।
खड़ा हूं कुछ सवाल लिए
मैं हैरान हूं परेशान हूं।
कौन ललकारा शोशल मीडिया में
कौन घिरा तलवारों में
सफेद झूठ वो मुरथल का
कैसे छप गया अखबारो में
दुकान मकान के चर्चे ही चर्चे
इन्सान जले का फिक्र नहीं।
जिसने भाईचारा फूंका है
उस बंदर का कहीं जिक्र नहीं।
आज कोस रहे है 35 उनको
जिसने कभी किसी को कोसा नहीं।
हैरान करती है भेड़चाल मुझको
ये सांसद किसी का मौसा नहीं।
लुटेरों की कौम थी जिसने
दुकान मकान सब तोड़ दिए
पर सड़कों पे खड़े लदे ट्रक
उन लुटेरों ने कैसे छोड़ दिये।
जिस बिस्तर पे राहगिरों को सुलाया
अभी मैं भी उसी पे लेटा हुं।
गर फंसों को खिलाना लूट है
तो गर्व है मुझे मैं लुटेरों का बेटा हूं।
रमेश चहल।

इसा पाणी सै हरियाणे का

इसा पाणी सै हरियाणे का......(गीत)
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म्हारे जैसा इतिहास खोज ल्यो और किते नहीं पाणे का। 
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
कोई भी संकट आया हम जमा नहीं घबराये कदे।
अपने हठ तै गोकुल नै औरंग के गोडे टिकवाए कदे।
देश धर्म और कौम के खातर बंध बंध थे कटवाए कदे।
झज्जर के नवाब तै हामनै नाको चणे चबवाए कदे।
सोलह सौ सतासी का इतिहास पढ़ो दुजाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
क्यूकर गजनी जाँदा जाँदा म्हारे धक्के चढ़ग्या था।
तैमूर लंग भी भूल भुलेखे शेरां की मांद मैं बड़ग्या था।
मोहने तै लड़दा अब्दुल्ला कड़ की ताण रिपड़ग्या था।
हरफूल जाट जुलानी का गौ खातर फांसी चढ़ग्या था।
गूंगा पन्ना रुके मारै गोरयां नै लटकाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
अपणी पगड़ी खातर हामनै खेली सै खून की होली राये।
भूरा और निघाईया मर्द थे मर्दानी थी बुआ भोली राये।
दुश्मनी भूल कै दोस्त बणगे भरली भाज कै कोली राये ।
पूरा गाम अड्या फौज कै छाती पै खायी गोली राये।
छह महीन्या तक फौज खपाई जिगरा था लिजवाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
अठरह सौ सतावन मैं भी हमनै ए अलख जगाई थी
गोरयां कै खिलाफ खाप नै जेली गंडासी उठाई थी
पापण लाल सड़क हांसी की खून गेल नुहायी थी
नाहर सिंह ऐकले नै दिल्ली की सीम बचायी थी।
हुकमचंद मुनीर बेग कै ना डर था कोये मरजाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
लाम्बे ठाड़े छैल गाभरू देखिये म्हारे जवान रै
खेल हो या फौज हो सब तै नियारी सियान रै।
सीम तै लेकै ओलिंपिक तक म्हारे कदमां के निसान रै।
सवासण भी कोये पाच्छै ना सै हम सब नै सै मान रै।
रमेश चहल किसान रै धरती पै सोना उगाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
म्हारे जैसा इतिहास खोज ल्यो और किते नहीं पाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
-रमेश चहल ।