Wednesday, September 19, 2012

तब अल्फाज़ मुझे लिखते है

जब आसमान के पंछी सारे मुझे राह भटकते दिखते है
तब मै अल्फाजों को नहीं दोस्तो अल्फाज़ मुझे लिखते है

जब धूप में के साये में कभी कोई मासूम हाथ जलाता है
गर्भ में पलता शिशु जब कोई सिसकी मुझे दे जाता है
रंगबिरंगी तितली कोई हैवान के हाथो म

सली जाती है
आसमान की चिड़िया भी जब पैरों तले कुचली जाती है
तब गीली कलम की नोंक से कुछ अक्षर आ चिपकते हैं
सियाही की नदी से होते हुए वो कागज़ पे आ बिदकते है
तब मै अल्फाजों को नहीं दोस्तो अल्फाज़ मुझे लिखते है

जब माँ कोई अपनी ही संतान के हाथों से मार खाती है
करम ही ऐसे लिखे ईश्वर ने बस ये कह कर रह जाती है
जब कोई बड़ी गाड़ी से उतर कर फसलो के भाव लगाता है
और धरतीपुत्र बाज़ार में कोडियों के भाव ही बिक जाता है
जब आदमी ही ऐसे ना निकले जैसे वो अक्सर दिखते है
कृष्णधरा पे सरेआम जब द्रोपदियों के जिस्म बिकते है
तब मै अल्फाजों को नहीं दोस्तो अल्फाज़ मुझे लिखते है

धरती की इन चीखों से मै हर बार सहम डर जाता हूँ
चाह कर भी अपने ये दोनों कान बंद नही कर पाता हूँ
और सहमी सहमी आँखों से मैंने जब भी भीतर देखा है
वहाँ टेढ़ी सी एक पगडण्डी है और सीधी सी एक रेखा है
हर बार मेरी सोच के घोड़े उस जगह पे जाकर टिकते है
मजबूरी की भीषण आग में जब दरिंदों के हाथ सिकते है
तब मै अल्फाजों को नहीं दोस्तो अल्फाज़ मुझे लिखते है
तब मै अल्फाजों को नहीं दोस्तो अल्फाज़ मुझे लिखते है
                                                                                      - रमेश चहल

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