Sunday, December 8, 2013

शराबी की बेटी ........


कभी भी खुल सकती हूँ मैं बिन बांध की पेटी हूँ।
किस्मत को कोसूं या बाप को मैं शराबी की बेटी हूँ।।

फटेहाल इस गरीबी में उस भगवान को धिक्कारुं मैं,
माँ को पिटता देखूं या फिर बाप को ही ललकारुं मैं,
दुःशासनो की नगरी में किस किरसन को पुकारूँ मैं,
जवानी ही है दुश्मन मेरी किस किस को दुत्कारुं मैं,
ना कोई यहाँ राँझा है मेरा और ना मैं हीर स्लेटी हूँ।
किस्मत को कोसूं या बाप को मैं शराबी की बेटी हूँ।।

एक मैली फटी साड़ी में मैं जिस्म छुपाये फिरती हूँ ,
लोगों की नजरों से दिन में मैं हजारों बार चिरती हूँ,
अँधेरी गलियों में भेड़ियों से कई बार मैं हिरती हूँ ,
बचते भागते जिस्मखोरों से ठोकर खा खा गिरती हूँ ,
गन्दी गालियों की चादर ओढ़कर मै कई बार लेटी हूँ।
किस्मत को कोसूं या बाप को मैं शराबी की बेटी हूँ।।

मुफ्तखोर बाप का हमारे सिर पर कोई साया नहीं ,
दुनिया रोज मरती है पर उसका बुलावा आया नहीं,
माँ खांसे टीबी की खांसी पर घर में हमारे माया नहीं,
सब बिक गया है घर से बस बिकी मेरी काया नहीं ,
पर अब बिकना पड़ेगा मुझको मैं ही ओलाद जेठी हूँ।
किस्मत को कोसूं या बाप को मैं शराबी की बेटी हूँ।।

कभी भी खुल सकती हूँ मैं बिन बांध की पेटी हूँ।
किस्मत को कोसूं या बाप को मैं शराबी की बेटी हूँ।। ----रमेश चहल।

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