Saturday, May 18, 2013

कहानी - कुआँ सूख गया था ..... ------रमेश चहल





सुनकर मैं थोड़ा अचंभित हुए बिना ना रहा सका। बात ही ऐसी थी। अल्का तो इसे अन्यथा लेकर बिटिया को सुलाने की भी कह चुकी थी पर पता नहीं क्यों मेरा दिल नहीं मान रहा था। बात कुछ भी नहीं, और थी भी बहुत बड़ी। ऐसा कैसे हो सकता था। मेरी बिटिया ने आकर बताया कि उसकी बड़ी दादी मां यानि मेरी दादी को कहानियां नहीं आती। सुनकर एक बारगी तो मैं अपनी हंसी को नहीं रोक सका पर ज्यों ही बिटिया ने गंभीर होकर कहा तो मुझे विश्वास नहीं हुआ।
‘मैं ही क्यों मेरे पड़ोस के मेरे हम उम्र सभी तो दादी मां से कहानियां सुनकर ही बड़े हुए हंै। परी, दानव और राजकुमारों की कहानियों और किस्सों का तो खजाना है मेरी दादी पर आज ऐसा क्या हुआ कि......! खैर! मुझे क्या? मैं भी अल्का की तरह से इसे हलके से ले लेता हूं। शायद सुनाने का मूड न होगा या फिर मुझसे नाराजगी होगी। अरे हां। मैं भी तो उनका हाल-चाल कई-कई महीने तक नहीं पूछ पाता। ... पर बिटिया से तो नाराजगी नहीं होनी चाहिए।’ सोचता हुआ मैं सोने की तैयारी करने लगा।
‘मैंने ही जिद करके बिटिया को दादी के पास कहानियां सुनने के लिए भेजा था। लेकिन दादी से यह उम्मीद नहीं थी। क्या दादी वास्तव में ही मुझसे नाराज है?’ मैं करवटें बदल रहा था, अल्का और बिटिया दूसरे कमरे में टी.वी पर कोई रियलिटी शो देख रही थी। मुझे नींद नहीं आ रही थी। मैं उठा और बिटिया को आवाज दी। वह नहीं आई और न ही अल्का ने कोेई जवाब दिया। मैंने फिर आवाज दी लेकिन इस बार भी कोई जवाब नहीं आया। हारकर मैं कमरे में पहुंचा और बिटिया को गोद में उठाकर बाहर निकल आया। बिटिया बोलती रही, पापा मुझे देखना है, मुझे देखना है लेकिन मैंने उसकी एक भी नहीं सुनी। अल्का पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा वो वैसे ही टीवी में मग्न थी।
बिटिया को लेकर मैं दादी मां के कमरे की ओर चल दिया। पता नहीं मुझे क्या सूझ रहा था, दिल कर रहा था कि दादी मां से जाकर लडूं। उन्हें खूब खरी-खोटी सुनाऊं। बिटिया को एक कहानी सुनाने में उनका क्या जाता था? लेकिन दूसरे ही पल मैंने सोचा कि कहीं घर में यूं ही हंगामा न हो जाए और बात भी न बढ़ जाए। किसी नए बखेड़े से बचने के लिए मैं चुपचाप ही दादी मां के कमरे में घुस गया। मुझे अचानक देखकर दादी मां चौंकी जरूर। चश्मा ठीक करती हुई बोली-‘‘अरे! सत्तू तूँ? इस बख्त?’’
‘‘हां दादी मां! सोचा काफी दिन हो गए आपके साथ बातें किए।’’ मैनें सीधे से बात पर ना आते हुए कहा।
‘‘दिन नहीं साल हो गए बेटा! सही ढंग से बातें किए। दो दिन के लिए आता है और भाग जाता है। उन दो दिनों में तेरी दादी के हिस्से में तो दो घंटे भी नहीं आते।’’ दादी ने उलाहना दे ही दिया तो मैं भी अपनी बात नहीं कर पाया।
‘‘हां दादी वो काम ही इतने है? समय ही नहीं मिलता।’’ मैं इतना ही कह पाया।
‘‘तो फिर आज दादी की याद कैसे आ गई जो इस समय यहां आए हो?’’दादी ने सवाल भी व्यंग्यात्मक तरीके से पूछा था इसलिए मुझसे जवाब दिया ही नहीं गया।
‘‘वो दादी बात ये कि कहानी सुने आपसे काफी दिन हो गए हैं। सोचा आज एक कहानी ही सुन लूं।’’ मैं हकलाते हुए कह ही गया।
‘‘सच्ची?’’ दादी ने पूछा।
‘‘हां दादी सच्ची।’’ मैंने कहा
‘‘नहीं सतू! तू झूठ बोल रहा है। तू कहानी सुनने नहीं आया बल्कि पूछने आया है कि बिटिया रानी को मैंने कहानी क्यों नहीं सुनाई।’’ दादी ने खुद ही कह दिया।
‘‘जी नहीं दादी... ऐसी बात नहीं है।’’ मैं फिर हकलाने लगा।
‘‘ऐसी ही बात है बेटा! वरना दादी के पास किसी और दिन क्यों नहीं आया?’’ दादी ने पूछा तो मैंने जवाब नहीं दे पाया। दादी भी मौन रही तो मैं धीरे से बोला- ‘‘दादी! नाराजगी मुझसे है तो फिर बिटिया को क्यों सजा देती हो?’’
‘‘ना रे कलमुंहे! ना तो तेरे से नाराजगी है और न ही गुड़िया से। ये तू सोच भी क्यों रहा है। बिटिया रानी मुझे तुझसे भी प्यारी लगती है क्योंकि कम से कम यह तो मेरे साथ खेल सकती है।’’ कहकर दादी ने बिटिया को बाहों में ले लिया और बिटिया ने भी दादी को गर्दन पर अपना आलिंगन कस दिया।
‘‘तो दादी इसे कहानियां जरूर सुनाया करो ताकि यह भी सिर्फ शहरी ही बनकर न रह पाए।’’ मैंने कहा।
‘‘तुझे क्या कम कहानियां सुनाई थी जो शहरी बन गया और अपनी दादी को ही भूल गया । कोई बात नहीं बच्चू कभी तू भी दादा बनेगा।’’ कहकर दादी रुआंसी सी हो गई। मैं किसी मुजरिम की तरह जमीन को देख रहा था।
‘‘आप दादी से ठीक से नहीं बोलते चलो सॉली बोलो।’’ लगभग तुतलाते हुए मेरी साढ़े छ: वर्षीया बिटिया बोली। सुनकर हम दोनों हंस पड़े । नन्हीं जान ने हमें फिर से सामान्य कर दिया था।
‘‘अच्छा छोड़! कौन सी कहानी सुनाऊं इसे? उससे बोलते हुए दादी बोली।
‘‘कोई सी भी आप तो कहानियों का कुं आ हो दादी।’’ मैनें मजाक किया।
‘‘पर ये कुंआ अब सूख चूका है बेटा! ’’दादी ही बोली
‘‘मतलब?’’
‘‘मतलब अब तेरी दादी को कहानियां याद ही नहीं है। मैं लगभग सारी कहानियां भूल चुकी हूं। ’’ दादी बोली
‘‘कैसे? ये कैसे हो सकता है दादी?’’ मैंने कहा।
‘‘बारह वर्ष के अकाल से तो किसान भी हल चलाना भूल जाते हैं बेटा तो क्या मैं 15 सालों के अकाल में कहानियां नहीं भूल सकती? सच में सतू ! तेरी कसम !15 साल पहले आखिरी कहानी तूने ही सुनी थी बेटा! उसके बाद आज तेरी बिटिया आई तो मेरे पास कुछ ऐसा नहीं था जो इसे सुना सकूं।’’ दादी का गला भर आया था।
‘‘तेरे बाद तेरे चाचाओं के लड़के , लड़कियां सभी टी.वी के आगे बैठ कर ही बडेÞ हुए हैें। दादी अकेली किसे कहानियां सुनाती। शुरू- शुरू में तो इन दीवारों से बतिया कर इन्हें ही कहानियां सुनाने का प्रयास करती रही पर ये निगोड़ी कहां हुंकारा भरती हैं। धीरे-धीरे मैं भी भूल गई।’’ दादी कह गई।
काफी देर कमरे में सन्नाटा पसरा रहा। बिटिया कभी मेरे मुंह की तरफ देखती तो कभी दादी के मुंह की तरफ।
‘‘तो दादी ऐसा करते हंै। आप कोई कहानी शुरू करो। कहीं भूलोगी तो मैं याद दिला दूंगा। और कुछ आप को याद आ जाएगा।’’ मैंने सुझाव दिया तो दादी मान गई।
दादी ने एक परियों की कहानी शुरू की। थोड़ा सा आगे ही गई थी कि मैंने टोक दिया। फिर टोका और बार-बार टोकने के क्रम में बिटिया ने ही हमें टोक दिया। बोली नहीं सुननी इस तरह और खड़ी हो गई। फिर मुड़ी और बोली- ‘‘ बड़ी दादी मैं सुनाऊं एक कहानी?’’
‘‘ हां सुनाओ बेटी!’’ दादी से कहां और सूखा कुआं नई बूंद सी आस लेकर बिटिया को देखने लगा।
‘‘वन्स देअ्र वाज ए क्रो। ही वाज वैरी थरस्टी। ही वेंट हेयर एंड देयर....।’’ बिटिया हाथ हिला हिलाकर कहानी सुना रही थी और अनपढ़ दादी बार-बार मेरी तरफ अनजान बनी देख रही थी। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। सूखा कुआं प्यासे कौवे से कोई भी शिक्षा ग्रहण करने में असमर्थ था जबकि बिटिया कहानी सुनाए ही जा रही थी।

------रमेश चहल 

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