Sunday, February 24, 2013

कितने इन्सान मरे हैं...

मत पूछो कि वहां कितने हिन्दू और मुस्लमान मरे हैं । 
देखना है तो सिर्फ ये देखो कि कितने इन्सान मरे हैं।। 

बिखर गयी है यारो आदमी की जून हैदराबाद में ,
पहले भी सड़क से पोंछा गया है खून हैदराबाद में, 
दफ़न हो गया लोगो का अब सुकून हैदराबाद में ,
आतंकवाद मनाता आया है हनीमून हैदराबाद में ,
किसके बूढ़े किसके बच्चे और किसके नौजवान मरे हैं ।
देखना है तो सिर्फ ये देखो कि कितने इन्सान मरे हैं।।

सफेदपोश दिल्ली में बैठा संसद से फिर ललकारेगा,
दो-दो लाख कीमत लगाकर मरे हुओ को पुचकारेगा,
चार दिन तक हरकोई पडोसी देश को ही धिक्कारेगा,
फिर आराम से एकदिन बैठ अपनी हार ही स्वीकारेगा,
भूल जायेगा मेहमान और कितने मेजबान मरे है ।
देखना है तो ........................................ ....।

गैरों से नहीं भारत माँ सदा खुद दिल्ली से हारती आई है,
बेगानों के नाम की गोली सदा खुद को ही मारती आई है,
बेटों के सिर की माला पहन सदा कर के आरती आई है,
सरहद पर पी कर घूंट खून की सदा माँ भारती आई है,
क्या कीमत लगाई उनकी जो सैनिक जवान मरे हैं ।
मत पूछो कि वहां ........................................।

मेरे हिंदुस्तान में हैवान आज कई इंसानों पे भारी हैं ,
राजधानी में सरेआम सडकों पे लुटती देश की नारी है ,
कौन था वो किसने किया ये पूछता खुद बलात्कारी है ,
वाह री व्यवस्था क्या कहने तेरी आज भी जाँच जारी है,
तेरे खोखलेपन से कितने मासूम कितने नादान मरे हैं ।
देखना है तो ........................................ ....।

कायर बैठा तख्त पे किसी प्रताप के सिर पर ताज नहीं,
आम आदमी की बहु बेटियां तक महफूज कहीं आज नहीं ,
बिखर गया सब सपने सा किसी चीज़ पे हमको नाज़ नहीं,
क्यूँ लगता है आखिर हमको कि ये राज हमारा राज नहीं ,
आखिर कब लगेगा की ये जिंदा नहीं कुछ बेजान मरे हैं ।
देखना है तो ........................................ ...........।
मत पूछो कि वहां कितने हिन्दू और मुस्लमान मरे हैं ।
देखना है तो सिर्फ ये देखो कि कितने इन्सान मरे हैं।।
-रमेश चहल

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