Saturday, May 18, 2013

सूरज की तरह चमकने की कभी चाह नहीं रखता ।
मै बगल में चोर और मुहँ में कभी शाह नहीं रखता । 

मै जुगनू हूँ चमक लेता हूँ खुद खातिर ही कभी कभी 
पल्लू में ज़हर ही सही किसी की आह नहीं रखता । 

उधार के नाम पर मंजूर मुझको दाद भी न होगी 
लौटा देता हूँ क़र्ज़ किसी की वाह वाह नहीं रखता । 

झुके ये सर बिन मुर्शिद के किसी और के आगे 
किताब-ए-जिंदगी में ऐसा कोई स्फाह नहीं रखता । 

ले जाये जो भटका के एक दिन दूर अपनों से 
एक मंजिल के लिए ऐसी कोई मै राह नहीं रखता ।
-रमेश चहल ।

बो कर ही मै आग गया हूँ ।


परबत के आगे डटने वाला खुद से ही मै भाग गया हूँ । 

बारूद की जगह उन तोपों से खुद को ही मै दाग गया हूँ ।। 

कह देना सपनो के सौदागर से तुम जाकर आज ही बेशक
बहला न और ज्यादा मुझको अब मै बिलकुल जाग गया हूँ । 

पौधे नही लावा फूटेगा इस बंजर बेजान ज़मीन से 
सोना देने वाली माँ के सीने में बो कर ही मै आग गया हूँ । 

अँधेरे से दोस्ती करने वालो एक बात समझ लो खरी खरी 
जलेंगे दिए हर मकान में मै छेड़ के दीपक राग गया हूँ । 

इशक़ इशक का जहर है ऐसा ना तोड़ जानता मै इसकी 
डसेगा पक्का मुझको ये मै छेड़ के फ़नियर नाग गया हूँ । 
                                                 ---रमेश चहल

Sunday, February 24, 2013

कितने इन्सान मरे हैं...

मत पूछो कि वहां कितने हिन्दू और मुस्लमान मरे हैं । 
देखना है तो सिर्फ ये देखो कि कितने इन्सान मरे हैं।। 

बिखर गयी है यारो आदमी की जून हैदराबाद में ,
पहले भी सड़क से पोंछा गया है खून हैदराबाद में, 
दफ़न हो गया लोगो का अब सुकून हैदराबाद में ,
आतंकवाद मनाता आया है हनीमून हैदराबाद में ,
किसके बूढ़े किसके बच्चे और किसके नौजवान मरे हैं ।
देखना है तो सिर्फ ये देखो कि कितने इन्सान मरे हैं।।

सफेदपोश दिल्ली में बैठा संसद से फिर ललकारेगा,
दो-दो लाख कीमत लगाकर मरे हुओ को पुचकारेगा,
चार दिन तक हरकोई पडोसी देश को ही धिक्कारेगा,
फिर आराम से एकदिन बैठ अपनी हार ही स्वीकारेगा,
भूल जायेगा मेहमान और कितने मेजबान मरे है ।
देखना है तो ........................................ ....।

गैरों से नहीं भारत माँ सदा खुद दिल्ली से हारती आई है,
बेगानों के नाम की गोली सदा खुद को ही मारती आई है,
बेटों के सिर की माला पहन सदा कर के आरती आई है,
सरहद पर पी कर घूंट खून की सदा माँ भारती आई है,
क्या कीमत लगाई उनकी जो सैनिक जवान मरे हैं ।
मत पूछो कि वहां ........................................।

मेरे हिंदुस्तान में हैवान आज कई इंसानों पे भारी हैं ,
राजधानी में सरेआम सडकों पे लुटती देश की नारी है ,
कौन था वो किसने किया ये पूछता खुद बलात्कारी है ,
वाह री व्यवस्था क्या कहने तेरी आज भी जाँच जारी है,
तेरे खोखलेपन से कितने मासूम कितने नादान मरे हैं ।
देखना है तो ........................................ ....।

कायर बैठा तख्त पे किसी प्रताप के सिर पर ताज नहीं,
आम आदमी की बहु बेटियां तक महफूज कहीं आज नहीं ,
बिखर गया सब सपने सा किसी चीज़ पे हमको नाज़ नहीं,
क्यूँ लगता है आखिर हमको कि ये राज हमारा राज नहीं ,
आखिर कब लगेगा की ये जिंदा नहीं कुछ बेजान मरे हैं ।
देखना है तो ........................................ ...........।
मत पूछो कि वहां कितने हिन्दू और मुस्लमान मरे हैं ।
देखना है तो सिर्फ ये देखो कि कितने इन्सान मरे हैं।।
-रमेश चहल

Friday, February 15, 2013

बस चंद इन्सान कमाये हैं

न गाड़ी ना ज़मीन और ना ही कोई महल बनाये हैं ।
कमाई के नाम पर दोस्तों बस चंद इन्सान कमाये हैं ।।

आड़े-तिरछे से अल्फाज़ कुछ लिखे हैं अख़बारों में।
कुछ पड़े हैं भीतर अभी कुछ बंट गए कलाकारों में।
कुछेक सुने पड़ोसियों ने कुछ दफ़न हुए दीवारों में।
कई बस गए फूलों में तो कई चढ़ गए तलवारों में।
कुछ अल्फाजों से मैंने कई बार रोते हुए हंसाये है ।
कमाई के नाम पर दोस्तों बस चंद इन्सान कमाये हैं ।।

दुश्मन नहीं बना कोई मेरा दोस्त बने कई रस्ते में ।
गैर जरुर बने कई कोई महंगे में तो कोई सस्ते में ।
सलाम करना सीख गया हूँ जाता क्या है नमस्ते में ।
यारों तुम्हारी सब यादें कैद हैं मेरे फटे-पुराने बस्ते में।
अभी अभी कुछ गीत मेरे गैरों ने भी गुनगुनाये हैं।
कमाई के नाम पर दोस्तों बस चंद इन्सान कमाये हैं ।।

बाप ने  ईमान सिखाया और माँ से सीखा प्यार ।
बहन से लगाव मिला तो हमजोलियों से तकरार।
मुर्शिद जी से गैरत सीखकर मै आ पहुंचा बाज़ार।
प्रेम की मंडी में आकर देखा सिर धड़ का व्यापार।
सूफ़ियत के कुछ नग्मे भी तन्हाई को सुनाये हैं।
कमाई के नाम पर दोस्तों बस चंद इन्सान कमाये हैं ।।

न गाड़ी ना ज़मीन और ना ही कोई महल बनाये हैं ।
कमाई के नाम पर दोस्तों बस चंद इन्सान कमाये हैं ।।
                                                         - रमेश चहल ।

Thursday, February 14, 2013

दो बेटियां

वो न कभी रूठती हैं और न ही कभी तकरार करती हैं ।
दो बेटियां रात को घर पे बस मेरा इंतजार करती हैं ।। 

 
मम्मी की सच्ची झूठी शिकायत होती हैं कुछ बस्ते में,
हाथ में आ छूट जाती हैं कभी महंगे में कभी सस्ते में,
कभी पीछे मुड़ मुड़ देखती हैं वो चलते चलते रस्ते में  
दोनों ही फिर खो जाती हैं गुड मोर्निंग और नमस्ते में 
स्कूल बस तक भी वो दोनों अकेला जाने से डरती हैं ।
दो बेटियां रात को घर पे बस मेरा इंतजार करती हैं ।। 

बड़ी थोड़ी सियानी है तो छोटी उतनी ही भोली है ,
साथ रहती है दोनों ऐसे जैसे कोई दामन चोली है ,
एक जाग ले रात रात भर तो दूसरी नींद की गोली है ,
सहेलियों की गिनती नहीं यूँ तो पूरी की पूरी टोली है ,
तकिया बनाकर टैडी का अब भी सिर नीचे धरती है ।
दो बेटियां रात को घर पे बस मेरा इंतजार करती हैं ।। 

चिड़ि कौवा भैंस पापा कभी हमारे साथ भी उड़ा दो ,
खेल में संग हमारे कभी गलत ऊँगली भी उठा दो, 
या फिर पापा हमारा बस एक इतना ही कहा पुगा दो ,
अपने जैसा हमारे लिए कोई रबर का खिलौना ला दो, 
रजाई में मुह देकर कभी कभी सिसकियाँ भी भरती हैं ।
दो बेटियां रात को घर पे बस मेरा इंतजार करती हैं ।। 

कब फ्री होवोगे पापा एक दिन छोटी ने सवाल कर लिया ,
मै बोला "तब बेटा,जब चार बन्दों ने मुझे कंधे धर लिया" ,
इस मजाक को छोटे से दिल ने अंदर अंदर ही जर लिया ,
"तो फ्री न होना प्लीज़"कह उसने बस्ता कंधे पे धर लिया,
और मै सोचता था की बेटियां हर बात कहाँ समझती हैं ।
दो बेटियां रात को घर पे बस मेरा इंतजार करती हैं ।। 

बेटी तो बेटी है दोस्तों वो तो हर कहना मान लेती हैं, 
हरकत को बिन् बोले कितना गहरा पहचान लेती है ,
चिड़िया पराये आँगन की ये कड़वा सच जान लेती हैं ,
बाप के लिए सदा दुआओ की एक चादर तान लेती है ,
कदम कदम पर जीती है और कदम कदम पर मरती है।
दो बेटियां रात को घर पे  बस मेरा  इंतजार करती हैं ।। 

वो न कभी रूठती हैं और न ही कभी तकरार करती हैं ।
दो बेटियां रात को घर पे बस मेरा इंतजार करती हैं ।। 
                                                          -रमेश चहल 

Wednesday, September 19, 2012

तब अल्फाज़ मुझे लिखते है

जब आसमान के पंछी सारे मुझे राह भटकते दिखते है
तब मै अल्फाजों को नहीं दोस्तो अल्फाज़ मुझे लिखते है

जब धूप में के साये में कभी कोई मासूम हाथ जलाता है
गर्भ में पलता शिशु जब कोई सिसकी मुझे दे जाता है
रंगबिरंगी तितली कोई हैवान के हाथो म

सली जाती है
आसमान की चिड़िया भी जब पैरों तले कुचली जाती है
तब गीली कलम की नोंक से कुछ अक्षर आ चिपकते हैं
सियाही की नदी से होते हुए वो कागज़ पे आ बिदकते है
तब मै अल्फाजों को नहीं दोस्तो अल्फाज़ मुझे लिखते है

जब माँ कोई अपनी ही संतान के हाथों से मार खाती है
करम ही ऐसे लिखे ईश्वर ने बस ये कह कर रह जाती है
जब कोई बड़ी गाड़ी से उतर कर फसलो के भाव लगाता है
और धरतीपुत्र बाज़ार में कोडियों के भाव ही बिक जाता है
जब आदमी ही ऐसे ना निकले जैसे वो अक्सर दिखते है
कृष्णधरा पे सरेआम जब द्रोपदियों के जिस्म बिकते है
तब मै अल्फाजों को नहीं दोस्तो अल्फाज़ मुझे लिखते है

धरती की इन चीखों से मै हर बार सहम डर जाता हूँ
चाह कर भी अपने ये दोनों कान बंद नही कर पाता हूँ
और सहमी सहमी आँखों से मैंने जब भी भीतर देखा है
वहाँ टेढ़ी सी एक पगडण्डी है और सीधी सी एक रेखा है
हर बार मेरी सोच के घोड़े उस जगह पे जाकर टिकते है
मजबूरी की भीषण आग में जब दरिंदों के हाथ सिकते है
तब मै अल्फाजों को नहीं दोस्तो अल्फाज़ मुझे लिखते है
तब मै अल्फाजों को नहीं दोस्तो अल्फाज़ मुझे लिखते है
                                                                                      - रमेश चहल

Saturday, September 15, 2012

तब गुनगुना लेना गीत मेरे मै अल्फाजों में मिल जाऊंगा......

जिंदगी के सफ़र में एक दिन मै कफ़न में सिल जाऊंगा
तब गुनगुना लेना गीत मेरे मै अल्फाजों में मिल जाऊंगा

अल्फाजों से गर फूटे लावा तो बिलकुल भी नहीं घबराना
सुलगती चिंगारियों से तुम तब अपनी जीभ को नहलाना
तब अंगारे बन कर फूटूँगा जब आग को दे दिल जा
ऊंगा
और गुनगुना लेना गीत मेरे मै अल्फाजों में मिल जाऊंगा

लाल किले पर जब एक शख्स हर साल यूं ही बहकायेगा
किसान का बेटा फिर यूँ ही दर- दर की ठोकरें खायेगा
फिर हिला लेना जुबान अपनी मै भी संग हिल जाऊंगा
और गुनगुना लेना गीत मेरे मै अल्फाजों में मिल जाऊंगा

जब रोटी चाँद सी लगने लगे तब ये सिर उठा लेना
पेट पे बांधकर मोटी रस्सी और लाठी फिर उठा लेना
तब छील देना व्यवस्था को मै भी संग छिल जाऊंगा
गुनगुना लेना गीत मेरे मै अल्फाजों में मिल जाऊंगा

नौजवान खो गया है अब शराब के खुले आहतों में
सोने की चिड़िया कैद हुई वेदेशी बैंको के खातों में
घोटालों का हिसाब नहीं मै भी बिन रसीद बिल जाऊंगा
गुनगुना लेना गीत मेरे मै अल्फाजों में मिल जाऊंगा

सोने की चिड़िया ले आओ तब ही कुछ हो पायेगा
चाहकर भी कोई मजदूर फिर भूखा न सो पायेगा
मै भी किसी गरीब के महल में फूल बन खिल जाऊंगा
गुनगुना लेना गीत मेरे मै अल्फाजों में मिल जाऊंगा

जिंदगी के सफ़र में एक दिन मै कफ़न में सिल जाऊंगा
तब गुनगुना लेना गीत मेरे मै अल्फाजों में मिल जाऊंगा
---रमेश चहल