परबत के आगे डटने वाला खुद से ही मै भाग गया हूँ ।
बारूद की जगह उन तोपों से खुद को ही मै दाग गया हूँ ।।
कह देना सपनो के सौदागर से तुम जाकर आज ही बेशक
बहला न और ज्यादा मुझको अब मै बिलकुल जाग गया हूँ ।
पौधे नही लावा फूटेगा इस बंजर बेजान ज़मीन से
सोना देने वाली माँ के सीने में बो कर ही मै आग गया हूँ ।
अँधेरे से दोस्ती करने वालो एक बात समझ लो खरी खरी
जलेंगे दिए हर मकान में मै छेड़ के दीपक राग गया हूँ ।
इशक़ इशक का जहर है ऐसा ना तोड़ जानता मै इसकी
डसेगा पक्का मुझको ये मै छेड़ के फ़नियर नाग गया हूँ ।
---रमेश चहल
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