सूरज की तरह चमकने की कभी चाह नहीं रखता ।
मै बगल में चोर और मुहँ में कभी शाह नहीं रखता ।
मै जुगनू हूँ चमक लेता हूँ खुद खातिर ही कभी कभी
पल्लू में ज़हर ही सही किसी की आह नहीं रखता ।
उधार के नाम पर मंजूर मुझको दाद भी न होगी
लौटा देता हूँ क़र्ज़ किसी की वाह वाह नहीं रखता ।
झुके ये सर बिन मुर्शिद के किसी और के आगे
किताब-ए-जिंदगी में ऐसा कोई स्फाह नहीं रखता ।
ले जाये जो भटका के एक दिन दूर अपनों से
एक मंजिल के लिए ऐसी कोई मै राह नहीं रखता ।
-रमेश चहल ।
मै बगल में चोर और मुहँ में कभी शाह नहीं रखता ।
मै जुगनू हूँ चमक लेता हूँ खुद खातिर ही कभी कभी
पल्लू में ज़हर ही सही किसी की आह नहीं रखता ।
उधार के नाम पर मंजूर मुझको दाद भी न होगी
लौटा देता हूँ क़र्ज़ किसी की वाह वाह नहीं रखता ।
झुके ये सर बिन मुर्शिद के किसी और के आगे
किताब-ए-जिंदगी में ऐसा कोई स्फाह नहीं रखता ।
ले जाये जो भटका के एक दिन दूर अपनों से
एक मंजिल के लिए ऐसी कोई मै राह नहीं रखता ।
-रमेश चहल ।
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