मेरे बाप का हर मजाक बनाने वाले वो लुच्चे बादल धरती से आँख मिचौली खेलने वाले वो टुच्चे बादल ज़मीन की पपड़ी पे हर बार ही दांत दिखा के हँसते है अरमानों की काया को किसी नाग की मानिंद डसते है
धान की पत्तियां जब भी सूरज से सहम कर डरती है मेरे बाप के दिल पे तब बिन गरजे बिजलियाँ गिरती है पर इनको कुछ नही लेना मेरे बाप के उन अरमानों से बेगानों का पेट भरने वाले उन भूखे मूर्ख किसानो से पानी के मौसम में तो ये खूब बूंद बूंद तरसाते है
पकी फसल को नीच खलिहान में ही डूबा जाते हैअन्नदाता का तो अब रब्ब ही रूठ गया लगता है सब की खैर दुआओ वाला दिल ही टूट गया लगता है पर कान खोल कर सुन लो अब ये बात कहे जाता हू बड़ा सा दिल पे बोझ है ये जो कब का सहे जाता हू
जिस दिने ये धरतीपुत्र इस ज़मीन से हट जायेगाघने बदलो वाला उसदिन ये आसमान फट जायेगा फिर करते रहना ठिठोली उन बंजर और बियाबानो से नाता ही टूट जायेगा जब धरती का इन किसानो से फिर कौन धरती को माँ कहेगा और कौन फसल उगाएगा
किस पे फिर तू बादल हसेगा और कौन तुझे फिर चाहेगा इसलिए बिन मांगे तुझको एक सलाह दिए जाता हूँ तरसा ना उस शरीर को जिसका बोया मै खाता हू बरस उस के लिए जो दुनिया के लिए कमाता है पेट भीचकर टांगों में खुद भूखा ही सो जाता है
पानी पिलाकर उस भूखे को उसकी दुआ तू पा ले संसार रुलाये जिसे पग पग पे तू तो उसे बीरा ले संसार रुलाये जिसे पग पग पे तू तो उसे बीरा ले संसार रुलाये जिसे पग पग पे तू तो उसे बीरा ले - रमेश चहल
जिस कै धोरै माँ सै वो लोग किस्मत आले होवै सै । बिन माँ आले बालक दोस्तो सारी जिंदगी रोवै सै ।।माँ तपती दोपहर मै बड़ पीपल की छाम सी होया करै ।
अर सर्दी के माह खिली हुई गरम घाम सी होया करै।।दुख दर्द मै माँ चोट पै दवा मरहम बाम सी होया करै ।
मंदिर मै के लोड़ जान की माँ घरां ए राम सी होया करै ।।माँ बिना दाम की होया करै जो खुद गिले मै सोवै सै ।अर बिन माँ आले बालक दोस्तो सारी जिंदगी रोवै सै ।।माँ तवे पै तपण जलण आली एक मीठी रोटी होया करै ।ममता के परबत की माँ सब तै ऊँची चोटी होया करै ।।
घणी मीठी कुछ नमकीन अर थोड़ी सी खोटी होया करै ।औलाद की खातर माँ ढाल तलवार अर सोटी होया करै ।।माँ खेल की गोटी होया करै जो बाट जीतण की जोवै सै । अर बिन माँ आले बालक दोस्तो सारी जिंदगी रोवै सै ।।गात ढकण की खातर लोगो दामण है चोली है माँ ।
सामण की फुहार मै कोयल सी मीठी बोली है माँ ।।कडवेपण दूर करण की एक मीठी सी गोली है माँ ।बरकत नै डाटण की खातर एक मजबूत झोली है माँ ।।पर थोड़ी सी भोली है माँ रै व़ा सारा कीमे न्योवै सै ।अर बिन माँ आले बालक दोस्तो सारी जिंदगी रोवै सै ।।
पर उस माँ नै उस के करे की कदे नी कीमत पांदी ।जमीन डांगर बंडज्या सै माँ किसे कै हिस्से ना आंदी ।।रै बुदापे मै माँ न्यू हो ज्या सै जणू कोए नौकर बांदी।सब राम की माया मान कै व़ा किसे कै दोष नी लांदी ।।रै व़ा आगै का नही खांदी बुदापे मै कपडे धोवै सै ।
बिन माँ आले बालक दोस्तो सारी जिंदगी रोवै सै ।।कान खोल कै सुन ल्यो सारे अपनी माँ नै ना कदे रुवाइयो रै ।भगवान की इस देण नै अपनी किस्मत तै ना कदे गवाईयो रै ।।उसकी हलवे कसार बरगी ममता अपने बालका नै भी खुवाइयो रै ।
उसके पैरां के धाम की असलियत अपने बालका नै भी बताइयो रै ।।कदे माँ नै भी लोरी सुणाइयो रै अर देखियो जागे सै के सोवै सै । बिन माँ आले बालक दोस्तो सारी जिंदगी रोवै सै ।।बिन माँ आले बालक दोस्तो सारी जिंदगी रोवै सै ।।
बिन माँ आले बालक दोस्तो सारी जिंदगी रोवै सै ।। -रमेश चहल