Friday, August 10, 2012

लुच्चे बादल


मेरे बाप का हर मजाक बनाने वाले वो लुच्चे बादल 
धरती से आँख मिचौली खेलने वाले वो टुच्चे बादल

ज़मीन की पपड़ी पे हर बार ही दांत दिखा के हँसते है
अरमानों की काया को किसी नाग की मानिंद डसते है
धान की पत्तियां जब भी सूरज से सहम कर डरती है
मेरे बाप के दिल पे तब बिन गरजे बिजलियाँ गिरती है
पर इनको कुछ नही लेना मेरे बाप के उन अरमानों से
 बेगानों का पेट भरने वाले उन भूखे मूर्ख किसानो से
पानी के मौसम में तो ये खूब बूंद बूंद  तरसाते है
पकी फसल को नीच खलिहान में ही डूबा जाते है
अन्नदाता का तो अब रब्ब ही रूठ गया लगता है
सब की खैर दुआओ वाला दिल ही टूट गया लगता है
पर कान खोल कर सुन लो अब ये बात कहे जाता हू
बड़ा सा दिल पे  बोझ है ये जो कब का सहे जाता हू
जिस दिने ये धरतीपुत्र इस ज़मीन से हट जायेगा
घने बदलो वाला उसदिन ये आसमान फट जायेगा
फिर करते रहना ठिठोली उन बंजर और बियाबानो से
नाता ही टूट जायेगा जब धरती का इन  किसानो से
फिर कौन धरती को माँ कहेगा और कौन फसल उगाएगा
किस पे फिर तू बादल हसेगा और कौन तुझे फिर चाहेगा
इसलिए बिन मांगे तुझको एक सलाह दिए जाता हूँ
तरसा ना उस शरीर को जिसका बोया मै खाता हू
बरस उस के लिए जो दुनिया के लिए कमाता है 
पेट भीचकर टांगों में खुद भूखा ही सो जाता है
पानी पिलाकर उस भूखे को उसकी दुआ तू पा ले
संसार रुलाये जिसे पग पग पे  तू तो उसे बीरा ले
संसार रुलाये जिसे पग पग पे  तू तो उसे बीरा ले
 संसार रुलाये जिसे पग पग पे  तू तो उसे बीरा ले
                                                           - रमेश चहल

कदे माँ नै भी लोरी सुणाइयो रै अर देखियो जागे सै के सोवै सै

जिस कै धोरै माँ सै वो लोग किस्मत आले होवै सै  ।                                                              
 बिन माँ आले बालक दोस्तो सारी जिंदगी रोवै सै ।।

माँ तपती दोपहर मै बड़ पीपल की छाम सी होया करै  ।
अर सर्दी के माह खिली हुई गरम घाम सी होया करै।।
दुख दर्द  मै माँ चोट पै दवा मरहम बाम सी होया करै ।
मंदिर मै के लोड़ जान की माँ घरां ए राम सी होया करै ।।
माँ बिना दाम की होया करै जो खुद गिले मै सोवै सै ।
अर बिन माँ आले बालक दोस्तो सारी जिंदगी रोवै सै ।।

माँ तवे पै तपण जलण आली एक मीठी रोटी होया करै ।
ममता के परबत की माँ सब तै ऊँची चोटी होया करै ।।
घणी मीठी कुछ नमकीन अर थोड़ी सी खोटी होया करै ।
औलाद की खातर माँ ढाल तलवार अर सोटी होया करै ।।
माँ खेल की गोटी होया करै जो बाट जीतण की जोवै सै ।
 अर बिन माँ आले बालक दोस्तो सारी जिंदगी रोवै सै ।।

गात ढकण की खातर लोगो दामण है चोली है माँ ।
सामण की फुहार मै कोयल सी मीठी बोली है माँ ।।
कडवेपण दूर करण की  एक मीठी सी गोली है माँ ।
बरकत नै डाटण की खातर एक मजबूत झोली है माँ ।।
पर थोड़ी सी भोली है माँ रै व़ा सारा कीमे न्योवै सै ।
अर बिन माँ आले बालक दोस्तो सारी जिंदगी रोवै सै ।।

पर उस माँ नै उस के करे की कदे नी कीमत पांदी ।
जमीन डांगर बंडज्या सै माँ किसे कै हिस्से ना आंदी ।।
रै बुदापे मै माँ न्यू हो ज्या सै जणू कोए नौकर बांदी।
सब राम की माया मान कै व़ा किसे कै दोष नी लांदी ।।
रै व़ा आगै का नही खांदी बुदापे मै कपडे धोवै सै ।
 बिन माँ आले बालक दोस्तो सारी जिंदगी रोवै सै ।।

कान खोल कै सुन ल्यो सारे अपनी माँ नै ना कदे रुवाइयो रै ।
भगवान की इस देण नै अपनी किस्मत तै ना कदे गवाईयो रै ।।
उसकी हलवे कसार बरगी ममता अपने बालका नै भी खुवाइयो रै ।
उसके पैरां के धाम की असलियत अपने बालका नै भी बताइयो रै ।।
कदे माँ नै भी लोरी सुणाइयो रै अर देखियो जागे सै के सोवै सै ।
 बिन माँ आले बालक दोस्तो सारी जिंदगी रोवै सै  ।।
बिन माँ आले बालक दोस्तो सारी जिंदगी रोवै सै  ।।
बिन माँ आले बालक दोस्तो सारी जिंदगी रोवै सै   ।।    -रमेश चहल