Thursday, December 29, 2011

सावधान.....

मुझ से उम्मीद बांधने वालो सावधान हो जाओ
मै वो नही जो तुम समझ रहे हो
मै एक बुझते दिए की लो जैसा हूँ
जिसे जलना भी है और लड़ना भी है
अंधकार से और खुद के अस्तित्व से
मेरी सिर पे कर्ज है एक धूप में झुलसी हुई चमड़ी का
जिसे मेरा बाप अपने शारीर पर
एक चादर की तरह ओढ़कर मेरे भविष्य के लिए दुआ करता है
मै करजई हूँ उन मिटी हुई हाथ की लकीरों का
जिनकी जगह फटी हुई बुवाइओ ने
तब से कब्ज़ा जमा रखा है
जब से मेरी माँ ने मेरी तरक्की के सपने देखने शुरू किये थे
मुझे चुकाना है हिसाब सूद समेत उन आशाओ का
जो दुसरो का पेट भरना ही जानती है पर
अपना पेट भरना उन्हें आज तक नही आया
अब आप ही कहो ऐसे में मुझे कैसे याद रहेंगे नाम
उन फूलो के जिस की तुलना सोंदर्य से की जाती है
चांदनी रात की आभा उस धरातल पे खड़े होकर कैसे निहारु
जहा खड़े होते ही चांद में
एक बड़ी सी रोटी के सिवा और कुछ नही दिखता

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