कागज फरोलते फरोलते सबेर आज 7 - 8 साल पुराणी कविता हाथ लगी .मेरी लिखी
दूसरी हरयाणवी कविता है या... कविता लिखी गयी थी B A फर्स्ट इयर मै जब मै
18 साल का था ............. .........अर बोली बी थी रत्नावली फेस्ट मै
...................... पहली बार सीनेट हाल मै..........खास बात या थी अक
उसे साल रत्नावली मै पोएट्री कॉम्पीटीसन. शुरू होया था ...... पहली साल 81
एंट्रीज थी जहा तक मेरा खियाल है ....... और उसमे दूसरा स्थान पाया था इस
कविता ..ने ..... इस लिए उन यादो के पिटारे से एक मोती आप के पेशे खिदमत
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कयूँ बावला होरया सै रुलदू यो तेरा हरयाणा नहीं
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पैरा मै रुलदी संस्कृति का कोई क्यूँ ठान्दा ठाणा नहीं
कयूँ सुनवाई खातर इसकी बनया अदालत थाणा नहीं
धरती नै सूंघ कै किस की पैड काढैगा
तू बावला होरया सै रुलदू यो तेरा हरयाणा नहीं .............
करू गुमान आज मै दुनिया की किस हस्ती पै
लाखो द्रोपदी नंगी होली इस किरसन की धरती पै
दुशासन का राज होया निरे धरम अर ज़ात बीकै सै
न्याय के इस अखाड़े मै रै रुलदू निरे गात बीकै सै
रांझे खुद दुश्मन हीर के कोई आखन काणा नहीं
हरफूल जाट जुलानी का क्यूँ फेर तै होया आणा नहीं
तू बावला होरया सै रुलदू यो तेरा हरयाणा नहीं .............
माँ बोली के कपडे तार सारे आम तमाशा दिखान्दे देखे
शहर की नक़ल गामा मै चाली बालक सियाणे गिरकांदे देखे
खुला आंगण बीच मै चूल्हा गिदाल्या गेल गिरांदे देखे
लोक गीत अर रागनिया नै तडपाकै काचा मंदा गांदे देखे
समझदार बेठे सै सारे कोई बालक याणा नहीं
फेर क्यु संस्कृति का कोए बुनता ताणा बाणा नहीं
तू बावला होरया सै रुलदू यो तेरा हरयाणा नहीं .............
बहु बेटी की इज्जत करनिये माणस ना वै आम रहे
फैसन तै बिना आज के गबरुवा नै ना काम रहे
बेटे की अगत की चाह मै बिक माँ बापां के चाम रहे
अर आंधी पीसै कुत्ता खावै लुट गामां के गाम रहे
चाला होगया कालेज आया बाप आज बेटे नै पीछाणा नहीं
अर गेट पै बैठ कै साल काढ दी कदे कालेज मै जाणा नहीं
तू बावला होरया सै रुलदू यो तेरा हरयाणा नहीं .............
सणे डाहले आज टूटी पींघ सामण की व़ा रीत गयी
दयोर कै ऊपर भाभी की फागण की व़ा जीत गयी
हाथ गात नै खावण लागे टूट रिश्त्या की भीत गयी
बाजरे की रोटी चटणी टिंडी व़ा ठंडी ठंडी शीत गयी
बियाह दसुटण पै डी जे रींगै किते बाजा नगाड़ा बजाणा नहीं
लाडो की मन की मन मैए रहगी कोई सांझी अर ढूकाणा नहीं
तू बावला होरया सै रुलदू यो तेरा हरयाणा नहीं .............
गुड के कोल्हू सांझे खलिहान बिड्सी की व़ा बात गयी
कठे पाली भैंस चरावै आज कित वै चांदनी रात गयी
मिल बैठ कै रोटी खाणिए माणसा की व़ा ज़ात गयी
बोल के गेल माणस मारदे सांगियाँ की औकात गयी
चरखे पड़े आज सारे छाता पै किसे मै भी ताकू ताणा नहीं
धनपत की ठहरो बियास की ठेस अर लख्मीचंद का गाणा नहीं
तू बावला होरया सै रुलदू यो तेरा हरयाणा नहीं .............
खुद की ओलाद नै पेट मै मरवादे इसा जमाना आरया सै
किसे कै धर्म ईमान नहीं माणस नै माणस खारया सै
बहुवा की सुण कै माँ काढदी बहण का रहया ओ भाई ना
अर भाई नै भाई पल मै मार दे कोई दादी चाची ताई ना
अपणी जननी कै लात मारदे आदमियत का ओ दाणा नहीं
अर सारे ऊरा परा नै खिंडगे रहया कोई माणस सियाणा नहीं
तू बावला होरया सै रुलदू यो तेरा हरयाणा नहीं .............
तेरा हरयाणा नहीं .............
तेरा हरयाणा नहीं .............
2 comments:
"तू बावला होरया सै रुलदू"
18 साल की उम्र म हमनै इसा और कवि पाना नहीं
Aacchya g
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