Saturday, June 4, 2016

अंत नहीं मेरी शान का

माना नहीं हूं शहजादा पर अंत नहीं मेरी शान का।
...दौड़ता है रगों में मेरे ....खून एक किसान का।
रमेश चहल।

रमेश चहल।

बिन तवज्जो के यक़ीनन सूख जाते हैं 
अनजाने रिश्तों में पानी बेहद जरूरी है। 
रमेश चहल।

ढूंढता हूं सन्नाटा मैं एक शोर की खातिर

सूरज चढ़ा फांसी नवेली नई भोर की खातिर।
सरेबाजार शाह लुट गये इक चोर की खातिर।
अपने पंख गिरा आया वो गैर की छत पे
आस्तीन में पाले थे सांप जिस मोर की खातिर।
मौत की चौखट को मैं ठोकर मार आया हूं
मुझे अभी और जीना है किसी और की खातिर।
मुझे पाना है तो किसी इन्सान से यारी कर ले
ये चंदा मामा ने कहा कल चकोर की खातिर।
चीख चिल्लाकर कहूंगा अब मेरे दिल की बातें
तभी ढूंढता हूं सन्नाटा मैं एक शोर की खातिर
यूंही नहीं शायरी आ जाती'चहल'चलते चलते
गुजारा है बेहद बुरा वक्त इस दौर की खातिर।
रमेश चहल।

मैं लुटेरों का बेटा हूं ...




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ना मैं कोई खोजकर्ता
ना कोई सियासतदान हूं।
खड़ा हूं कुछ सवाल लिए
मैं हैरान हूं परेशान हूं।
कौन ललकारा शोशल मीडिया में
कौन घिरा तलवारों में
सफेद झूठ वो मुरथल का
कैसे छप गया अखबारो में
दुकान मकान के चर्चे ही चर्चे
इन्सान जले का फिक्र नहीं।
जिसने भाईचारा फूंका है
उस बंदर का कहीं जिक्र नहीं।
आज कोस रहे है 35 उनको
जिसने कभी किसी को कोसा नहीं।
हैरान करती है भेड़चाल मुझको
ये सांसद किसी का मौसा नहीं।
लुटेरों की कौम थी जिसने
दुकान मकान सब तोड़ दिए
पर सड़कों पे खड़े लदे ट्रक
उन लुटेरों ने कैसे छोड़ दिये।
जिस बिस्तर पे राहगिरों को सुलाया
अभी मैं भी उसी पे लेटा हुं।
गर फंसों को खिलाना लूट है
तो गर्व है मुझे मैं लुटेरों का बेटा हूं।
रमेश चहल।

इसा पाणी सै हरियाणे का

इसा पाणी सै हरियाणे का......(गीत)
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म्हारे जैसा इतिहास खोज ल्यो और किते नहीं पाणे का। 
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
कोई भी संकट आया हम जमा नहीं घबराये कदे।
अपने हठ तै गोकुल नै औरंग के गोडे टिकवाए कदे।
देश धर्म और कौम के खातर बंध बंध थे कटवाए कदे।
झज्जर के नवाब तै हामनै नाको चणे चबवाए कदे।
सोलह सौ सतासी का इतिहास पढ़ो दुजाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
क्यूकर गजनी जाँदा जाँदा म्हारे धक्के चढ़ग्या था।
तैमूर लंग भी भूल भुलेखे शेरां की मांद मैं बड़ग्या था।
मोहने तै लड़दा अब्दुल्ला कड़ की ताण रिपड़ग्या था।
हरफूल जाट जुलानी का गौ खातर फांसी चढ़ग्या था।
गूंगा पन्ना रुके मारै गोरयां नै लटकाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
अपणी पगड़ी खातर हामनै खेली सै खून की होली राये।
भूरा और निघाईया मर्द थे मर्दानी थी बुआ भोली राये।
दुश्मनी भूल कै दोस्त बणगे भरली भाज कै कोली राये ।
पूरा गाम अड्या फौज कै छाती पै खायी गोली राये।
छह महीन्या तक फौज खपाई जिगरा था लिजवाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
अठरह सौ सतावन मैं भी हमनै ए अलख जगाई थी
गोरयां कै खिलाफ खाप नै जेली गंडासी उठाई थी
पापण लाल सड़क हांसी की खून गेल नुहायी थी
नाहर सिंह ऐकले नै दिल्ली की सीम बचायी थी।
हुकमचंद मुनीर बेग कै ना डर था कोये मरजाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
लाम्बे ठाड़े छैल गाभरू देखिये म्हारे जवान रै
खेल हो या फौज हो सब तै नियारी सियान रै।
सीम तै लेकै ओलिंपिक तक म्हारे कदमां के निसान रै।
सवासण भी कोये पाच्छै ना सै हम सब नै सै मान रै।
रमेश चहल किसान रै धरती पै सोना उगाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
म्हारे जैसा इतिहास खोज ल्यो और किते नहीं पाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
-रमेश चहल ।

Friday, September 26, 2014

--रमेश चहल।


आसमान में उड़ने वाला मैं अपने पर गवा बैठा। 
बेगानी दस्तार संभाले आज अपना सर गवा बैठा।।  

अनजान  परिंदा हूँ भटकना काम है मंजिलों  पर                                                                        
लोगो ने आशियां बना डाले मैं अपना घर गवा बैठा। 

अजब दस्तूर है यारो इन कड़कड़ते कागज़ों का 
कोई महफ़िल गवा बैठा तो कोई दर गवा बैठा। 

जाग कर काटी हैं वो स्याह रातें ग़ुरबत की 
नींद जब आई तो मैं अपना बिस्तर गवा बैठा।   

सियासत चीज़ ऐसी है चुभती रहेगी पग पग पर 
कल का अख़बार कहता है बाप वर गवा बैठा। 

एक कंधे से मिलके चला था 'चहल ' कुछ पाने को 
उसका खुदा खो गया और मैं अपना हर गवा बैठा।                  

आसमान में उड़ने वाला मैं अपने पर गवा बैठा। 
बेगानी दस्तार संभाले आज अपना सर गवा बैठा।  

                                                    --------------रमेश चहल।

Sunday, December 8, 2013

मैं कलम हूँ मैं कलम हूँ ...... ।।




मैं कलम हूँ मैं कलम हूँ लोगो मेरी कदर करो।
मुझे उठाने से पहले थोडा सा बस सबर करो।।

गुड से ज्यादा मीठी हूँ गोलियों से ज्यादा तीखी हूँ।
बारूद सी स्याही संग रह कर एक ही बात सीखी हूँ।
बुराई के संग जाकर कभी जीवन न बदतर करो।
मैं कलम हूँ मैं कलम हूँ लोगो मेरी कदर करो ।।

मेरा लिखा सच जीता है झूठ सदा ही विष पीता है।
कैसे - कैसे कल बीता है.य़े मैंने ही लिखी गीता है।
आज भी बेघर सीता है उसको न दर बदर करो।
मैं कलम हूँ मैं कलम हूँ लोगो मेरी कदर करो ।।

राम लक्ष्मण आज है जो मैं वाल्मीकि के साथ गयी।
पांडव आज भी ज़िंदा है जब मैं व्यास के हाथ गयी।
महाभारत रामायण से सीखो अब तुम न ग़दर करो।
मैं कलम हूँ मैं कलम हूँ लोगो मेरी कदर करो ।।

लहू में डूब कर कभी कभी क्रांति नयी दे जाती हूँ।
आतंक की कैदी होकर मैं चीखती और चिल्लाती हूँ।
मै भी रोती पछताती हूँ सबको ही ये खबर करो।
मैं कलम हूँ मैं कलम हूँ लोगो मेरी कदर करो ।।

गलत हाथों में चली गयी हूँ यही दर्द अब गहरा है।
जंग लग गया पड़े पड़े सही हाथों पे अब पहरा है।
राई का पहाड़ बना टीवी पे यूँ ना चबर चबर करो।
मैं कलम हूँ मैं कलम हूँ लोगो मेरी कदर करो ।।

जब भी कड़वे सच से मेरा साक्षात्कार हुआ है।
तब तब लोगो चोराहे पे मेरा बलात्कार हुआ है।
रहम करो मुझपर अब और न तुम जबर करो।
मैं कलम हूँ मैं कलम हूँ लोगो मेरी कदर करो ।।

मैं कलम हूँ मैं कलम हूँ लोगो मेरी कदर करो।
मुझे उठाने से पहले थोडा सा बस सबर करो।।
- --रमेश चहल।