Tuesday, June 14, 2011

मै किसान का बेटा सूं ........


गरीबी का दोल्डा ओड़ कै मै कई बार लेटया सूं
तंगी मंदी अर दर्द तै मै कई बार फेटया सूं
लोगां नै कमा कै देईए अर खुद पै कुछ नी
आज फख्र करू के रोऊ मै किसान का बेटा सूं ........



गाम कै बीच मै छोटी इंटा का एक छोटा सा घर सै
अर तंगी मंदी दर्द के गेल्या माहरे चार जिया का बसर सै
एक माँ एक बहन अर मेरे बाप का उतरा होया चेहरा सै
नहर का हाला अर बिजली का बिल आज भी ग़ोज में लेहरया सै
आज किसान की असलियत की फोटो थाम नै दिखाऊंगा
अर इस खेती मै के बचै सै यो सारा हिसाब सुनाऊंगा
मेरै आज भी वो दिन याद सै जड़ मंडी मै चाला होरया था
अर सीरी नै छाती कै लाये मेरा बाप भरल भरल रोरया था
एक तरफ तो जय जवान जय किसान के नारे लाये जा रे थे
अर दूसरी तरफ किसान के लत्ते सरेआम उतारे जा रे थे



(
और जहा से शुरुआत हुयी )
अम्बर के बदला की बाट देख देख कै सबे कीमे खो लिया था
ज़मीन पै आई पपड़ी नै खुरच कै मेरा बाप आधा पागल हो लिया था
फेर खबर आई तो सारा गाम दुःख में जकड लिया
अक नम्बरदार का गाबरू छोरा रात बिजली नै पकड़ लिया
होणी बरती एक दिन यो भगवन भी हम तै खीजरया था
सप्रे करदा करदा मेरा ताऊ चन्दगी हम तै बिछडया था
सीजन मै हाल यो था कोई पानी खातर लड़ मर रया था
कोए रीढ़ आली तुडान खातर कुए के माह पड़ रया था
किसे का बालक पचास पिसे की कुल्फी पै रो रो काटिए काटे था
अर कोई देख मास्टर के बालका के लत्ते आपणे दिल नै डाटे था
मेरै याद सै दिवाली की वा काली रात के वा क्यूकर छाई थी
कर्जे के बोझ मै दबे चांदी नै दोस्तों उस दिन फंसी खाई थी
सरसा शहर मै उस रात दिवाली का जमा मीड सा बल्या था
अर माहरे गाम गुआंड मै उस रात किसे कै चूल्हा नी जल्या था


अर दिन बी याद सै जद घागर मै उफान था
चोगरदे नै पानी पानी सारा कीमे बियाबान था
सारी फसल पानी मै उपरला हिस्सा भी नी छुट रया था
देख बखत की मार माहरे सारे गाम का दम घुट रया था
फसल की चिंता मै ना कोई जागे था अर ना सोवै था
म्हारे गाम का हर आदमी उस टेम कुण मै बढ बढ रोवै था
सरपंच का छोरा अर सीरी पानी मै तिर कै फसल का जाला टा गए थे
अर इसे गए दोस्तों के मै उरै लिया अर वै आज लग उलटे नी आए थे



ले देकै इस विपदा तै भी एक दिन पार पाया
अर पानी उतरे पाछै लोगां की साँस मै साँस आया
लड़ घुल कै किस्मत गेल्या फसल मंडी मै आई थी
रात दिन की मेहनत दोस्तों उस दिन रंग ल्याई थी
फेर इस उपरला नै के कहदे रै रेट नै धरण धरण छन गया
फसल का समुन्दर दिखनिया मिनट मै पानी का जोहड़ बन गया
मंडी मै अफरा तफरी थी कोई तिरपाल अर कोई पन्ना चक रया था
अर सोच कै अपणी अगत सारया का कालजा धक् धक कर रया था
आली होई फसल नै लोग पसीनया गेल्या सुखावै थे
ख़रीदन आले अफसर हाथ मै ठान्दे नाक चड़ावै थे
अर सीधा साधा दिखनिया माणस आज एक उल्टा काम करै था
बुकावे मै कै सड़क पै लिटकै आज चक्का जाम करै था
रै रोटी सेक्निया माणस आज उरै भी उसती बुकावै था
तंगी मंडी अर दर्द गेल पुलिस की लाठी भी खुवावै था



पन्दरा दिन पाछै बिकी फसल एक और मादी छिड़ कै रहगी रै
सारी साल की कमी उस पैड की सियाही मै लिबड़ कै रहगी रै
आढ़ती की बही पै गूंठा ला कै जिब मेरा बाप घर नै जावै था
कर बेट्या बरगी फसल नै याद उसका कालजा मुह नै आवै था
आज दुनिया के अन्नदाता का यो हाल हो लिया
इस खेती के चक्कर मै मेरा सारा गाम कंगाल हो लिया
अर इब मेरै गेल बणनी या सब कयोंके मै छोरा जेठा सूं
अर आज फख्र करू के रोऊ रै मै एक किसान का बेटा सूं
दोस्तों एक अन्नदाता का बेटा सूं
एक किसान का बेटा सूं

4 comments:

Sunny said...

bhai saab bhot badhiya
padh ke kaalja dhak dhak bole s ..
bhot badhiya bhai saab ..
very gud jnaab ..
bhot badhia ..

Sumitt Singh said...

भाई एक-एक लफ्ज़ में दर्द पिरो रखा है , speechless , can't spit out a single word..

hats off chahal sahab..

Ramesh Chahal said...

thanx summit ji

Ramesh Chahal said...

thanx suunny bhai